Vastu Vidya संशोधित व संक्षिप्त व्याख्यान सहित (Hindi Edition)
Shashtri, K. Mahadev
‘अनंत शयन संस्कृत ग्रंथावली’ के तीसवाँ (३०) अंक का प्रसिद्ध ‘वास्तु विद्या’ का यह द्वितीय संस्करण है। यह ११०६वें वर्ष (कोलंबाब्द) में आरम्मुळ वासुदेव मूस महाशय से प्राप्त वास्तु विद्या का केरल भाषा में लिखित व्याख्या के आधार पर, इसी ग्रंथालय में तात्कालिक अध्यक्ष, श्री महादेव शास्त्री के द्वारा प्रस्तुत लघु विवृत्ति नाम के व्याख्यान को अर्थ स्पष्टीकरण के लिए संयोजित किया है। वास्तु संबंधी ज्ञान इस ग्रंथ से प्राप्त हो, अतः इसका ‘वास्तु विद्या’, संज्ञा करण समुचित लगता है।
और यह ‘साधन कथन’ से आरंभ होकर, ‘मृल्लोष्ट विधान’ तक सोलह अध्यायों में सगुंफित है। ग्रंथ के सोलहवें अध्याय के अंत में, समाप्ति प्रकटन का कोई दूसरा वाक्य उपलब्ध नहीं है। ‘इति वास्तु विद्या समाप्त’, ऐसा दृश्यमान होने पर भी—
“दारुस्वीकरणं वक्ष्ये निधिगेहस्य लक्षणे।”
(अध्याय १३)
अर्थात् निधि गेह के लक्षण में दारु ग्रहण (लकड़ी का चयन) करना बताऊँगा।
इस प्रकार ग्रंथकर्ता के ‘दारुस्वीकरण’ आदि स्वयं की वचनबद्धता से बोध के अभाव से (अज्ञानता या भ्रम के कारण) लेखक के द्वारा (‘इति वास्तु विद्या समाप्त’ ऐसा) लिखित होना संभावित होता है।
出版商:
Prabhat Prakashan Pvt. Ltd.
語言:
hindi
ISBN:
B0BVWBLY82
文件:
EPUB, 2.23 MB
IPFS:
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